दुनिया में अब तक बनी फिल्मों की संख्या का सटीक अनुमान लगाना कठिन है, क्योंकि हर साल हजारों फिल्में विभिन्न भाषाओं और शैलियों में बनती हैं। हालांकि, यह माना जाता है कि 2024 तक लगभग 5 लाख से अधिक फिल्में बनाई जा चुकी हैं। इनमें हॉलीवुड, बॉलीवुड, और अन्य देशों की फिल्में शामिल हैं। भारत, अमेरिका, और नाइजीरिया जैसी फिल्म इंडस्ट्रीज़ दुनिया में सबसे ज़्यादा फिल्में बनाने के लिए प्रसिद्ध हैं।
दुनिया की सबसे पुरानी फिल्म मानी जाने वाली “Roundhay Garden Scene” है। यह एक बहुत ही छोटी मूक फिल्म है जिसे 14 अक्टूबर 1888 में फ्रांस के लुइस ली प्रिंस (Louis Le Prince) ने फिल्माया था। इस फिल्म की लंबाई केवल 2.11 सेकंड है और इसमें कुछ लोग एक बगीचे में टहलते हुए दिखाई देते हैं। यह फिल्म आज भी उपलब्ध है और इसे फिल्मों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
भारत की पहली फिल्म “राजा हरिश्चंद्र” है, जिसे 1913 में दादा साहेब फाल्के ने बनाया था। यह एक मूक फिल्म थी और इसे भारतीय सिनेमा की पहली फीचर फिल्म माना जाता है। “राजा हरिश्चंद्र” की कहानी एक सत्यवादी राजा की है, और इस फिल्म ने भारतीय सिनेमा की नींव रखी। फिल्म के निर्माण के बाद, दादा साहेब फाल्के को भारतीय सिनेमा के पितामह के रूप में जाना जाने लगा।
“राजा हरिश्चंद्र” की कहानी एक सत्यवादी और धर्मनिष्ठ राजा की है, जो अपने सत्य और धर्म की रक्षा के लिए सभी प्रकार की कठिनाइयों का सामना करते हैं।
कहानी कुछ इस प्रकार है:
राजा हरिश्चंद्र सत्यवादी और न्यायप्रिय राजा थे। एक बार ऋषि विश्वामित्र ने उनकी सत्यनिष्ठा की परीक्षा लेने का निश्चय किया। ऋषि ने राजा से यज्ञ के लिए उनकी सारी संपत्ति मांग ली। राजा ने अपनी संपत्ति देने के बाद अपने राज्य का त्याग भी कर दिया और अपनी पत्नी तारा और पुत्र रोहिताश्व के साथ वन में रहने चले गए।
जब उनके पास धन नहीं बचा, तो राजा हरिश्चंद्र ने एक श्मशान में दास के रूप में काम करना शुरू किया। उनकी पत्नी तारा ने अपने पुत्र को खो दिया, लेकिन वे इतने निर्धन थे कि पुत्र के अंतिम संस्कार के लिए भी उनके पास पैसे नहीं थे। तारा को अपने आभूषण बेचने पड़े ताकि वह अंतिम संस्कार कर सके। इस दौरान राजा को अपनी पत्नी और पुत्र के मृत शरीर के लिए भी शुल्क लेना पड़ा, लेकिन उन्होंने सत्य के मार्ग को नहीं छोड़ा।
अंततः, ऋषि विश्वामित्र ने उनकी सत्यनिष्ठा से प्रभावित होकर उन्हें उनकी परीक्षा से मुक्त कर दिया और उन्हें पुनः उनका राज्य, परिवार, और सुख-समृद्धि प्रदान की। देवताओं ने भी राजा हरिश्चंद्र की सत्यनिष्ठा की प्रशंसा की।
यह कहानी सत्य, धर्म और न्याय की महत्ता को दर्शाती है और भारतीय संस्कृति में एक आदर्श के रूप में देखी जाती है।